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अभी नही…अभी नही…

दूर हूँ मैं तुझ से ,        कभी नही… कभी नही… तो पास आ ऐ ज़िन्दगी,         अभी नही… अभी नही… क़ैद में हैं स्वप्न मेरे ,         कभी नही… कही नही… भर लो उड़ान ऐ ज़िन्दगी ,        अभी नही… अभी नही… तन्हाई में कब तक जियूँ ,         कभी नही… कभी नही… मेरे साथ आ ऐ ज़िंदगी ,         अभी नही… अभी नही… भटकता रहूँ तेरी चाह में ,         कभी नही…कभी नही… तो हमराह बन ऐ ज़िंदगी ,         अभी नही… अभी नही…            “रजनीश भारद्वाज”

उम्मीद की किरण

 शून्य से आरम्भ हुआ , शून्य में समा रही, ऐ मालिक देख तेरी धरती , किस गर्त में समा रही । अपनो से अपने बिछड़ रहे , जीवन गुज़र रहा संताप में , आँखे भी अब सूख चुकी हैं , दर्द के उफनते बाढ़ में , इंसान ही है वो , जो इंसानियत को खा रहा , संसाधन को रोक के , लाशें है गिनवा रहा , उत्कृष्टता की खोज में , दुर्गति को पा रही , ऐ मालिक देख तेरी धरती , किस गर्त में समा रही । उम्मीदों की हर किरण ,पीड़ा जनित धुँध में समा रही , लाख जतन के बाद भी , ज्ञान चक्षु निर्वात में खो जा रही , थाम लो रथ काल-चक्र का , अब आस बस तुझ से बची , ऐ मालिक देख तेरी धरती , किस गर्त में समा रही ।                     “रजनीश भारद्वाज”

भूमिपुत्र

दंगाई नही...दयावान है ये , माँ भारती की असली संतान हैं ये , ख़ुद आधे पेट ही खाते हैं , पर हर जन के लिए अन्न उपजाते हैं , रक़्त को पसीना बनाते है , तब जाके फ़सलो को सिंच पाते हैं , राजनीति से अनभिज्ञ है ये , क़र्ज़ के कुचक्र से त्रस्त है ये , सत्ता की क़ोई इच्छा नहीं , खलिहान ही इनका रजवारा है , लहलहातीं फ़सले ही जिनकी , बहुमूल्य धन-सम्पदा का ख़ज़ाना हैं , बलवाई नही...बलवान हैं ये , दृढ़ निश्चयी हलधर “भूमिपुत्र” किसान हैं ये ।             “रजनीश भारद्वाज”

संकल्प

बेटी थी वो हमारी , उसकी हाथों में फूल होने चाहिए , सपने थे उसके आँखों में , जिसे उड़ने को पंख थे चाहिए ।                         विरोध ही पर्याप्त नही ,                          विद्रोह होना चाहिए ,                         जब तक समूल नाश न हो पापियों का ,                         आप के मन में आक्रोश होना चाहिए । ग़र नम है आँख मेरी ,  वो आश्रु नही तेज़ाब होना चाहिए , गिरे जो ज़ालिम के सोच पर ,  कु-संस्कार जल के ख़ाक होनी चाहिए ।                         इंसानियत है धर्म हमारा ,                          क्या इसमें भी विचारों का भेद होना चाहिए ,                     ...

इश्क़

 हे माधव..,अपना वाला इश्क़ हमें भी करा दो , करते हो जो आप रासलीला, उसके गुर हमें भी सिखा दो , कैसे तेरे धुन में खो जाए है ये गोपियाँ , हे माधव..,अपनी बंशी की धुन हमें भी सिखा दो ।                                                   असर था युग़ का ,या प्रेम था जनमानस का ,     कैसे मोह लिया मन सारे संसार का , अपनी ये माया हमें भी सिखा दो ,    कैसे तेरे रंग में रंग जाए है ये दुनिया ,  हे माधव..,अपना वाला रंग में हमें भी रंगा दो ।    कण कण में तेरा वास था ,हर जन में तेरा प्यार था , ना रंग का था भेद ,ना जीवों में ही द्वेष था , इस जग में भी प्रभु फिर से अवतार लो , सुदामा वाला साथ हमें भी सिखा दो , हे माधव..,अपना वाला इश्क़ हमें भी करा दो ।                              “रजनीश भारद्वाज”

भाग्य विधाता

हम मज़दूरों का हक़ ना मारो, मजबुर तुम हमको ना जानो, मेहनत की हम खाते हैं , आधे वेतन में ही खुश हो जाते हैं , रक़्त जब पसीना बनकर बहता हैं, तब साहब खुश होकर कहता है, जा तुझको बड़ा ईनाम दिया ,आधी मजदूरी देकर तेरा सम्मान किया , पुराना वक़्त है बदल चुका, हर कामगार अपना अधिकार है समझ चुका, कब तक हमें तुम रोक पाओगे ,कब तक हक़ हमारा तुम छिन पाओगे, अत्याचार की अब इंतहा हो गयी, तेरी उल्टी गिनती अब शुरू हो गयी , वक़्त रहते तुम संभल जाओ , छोड़ो पद और कुर्सी से तुम उतर जाओ , हर दबी आवाज़ अब बाग़ी होगी , हर कलम में आग की स्याही होगी, ये आसमाँ हमारी माँगो से गूंजेगा , हर लेख हमारे तेरे कारनामे उकेरेगा , हमारी माँगे मानो तुम , हमारा पुराना स्वाभिमान लौटा  दो तुम , अपने अधिकारो से हमारा नाता है , हम ही ख़ुद के भाग्य विधाता हैं ।                                        “रजनीश भारद्वाज” 

हमराही

‪ द्वारपाल बन के तू खड़ी है, ऐसी क्या मेरी गलती है,‬ ‪प्रेम हमारा सारा जग है जाने, तू क्यों साथ छुड़ावे है,‬ ‪नाराज न हो प्रियतम मेरी, क्या तू मेरे बिन जी पावेगी,‬ ‪बातें चाहे कुछ भी कह ले, नम आँखे तेरा हाल बतावे हैं ।‬   ‪लाल जोड़ा, हरी चुरिया, तेरे माथे पर टिका शोभे है,‬ ‪क़हर लागे है जब तू ऐसे, शून्य नजरो से मुझे देखे हैं ,‬ ‪सूरज के स्वर्णिम किरणे , तेरे चेहरे का रंग निखारे हैं ,‬ ‪एक बात बता तू मोहे, इतने नख़रे कहा से लावे हैं ।‬   ‪चल मान लिया तेरी बाते, सारी गलती म्हारी हैं,‬ ‪न जाऊँगा छोड़ के तुझको, मेरी क़सम ये पूरी है ,‬ ‪अब तो आलिंगन कर ले हमारा, क्या अब भी कोई मजबूरी है,‬ ‪सौ बात की एक बात ,हमराही मेरे ये जीवन तुझ बिन अधूरी है...!‬                               “रजनीश भारद्वाज” 

मैं हूँ बैंकर

उन्नति का आसार हूँ मैं, विपत्ति का आधार हूँ मैं , हर वर्ग का साथी हूँ , हर समाज को अपनाता हूँ , हर ग्राहक हमारा इष्ट हुआ ,हमारा व्यवहार हमेशा शिष्ट रहा , कर्म ही हमारी पूजा हैं ,तब जाकर क़ोई बैंकर कहलाता हैं । यूँ ही नही झोपड़ी से ,हमारा office महल हुआ , लेज़र और रजिस्टर से ,finacle x का सफ़र हुआ, सिर से बहते पसीने को कभी, ऐरि से निकलते देखा हैं , नदी उतरकर क़ोई सेवा पहुँचाता हैं, तब जाकर क़ोई बैंकर कहलाता हैं । यु ही नही हर क़ोई ,5 ट्रिलियन का सपना संजोए हैं , आत्मनिर्भरता की हर कसौटी पर, हम ही सर्वप्रथम आए हैं , घर परिवार का पता नही, COVID-19 से भी मैं डरा नही, हर आपदा मे प्रथम पंक्ति के सेवादाता हैं,तब जाकर क़ोई बैंकर कहलाता हैं । सेवा हमारी आजीविका हैं, तो हम स्वभाविक मज़दूर हुए , अपने ही नेताओ की नाकामी से ,हम असुविधाओं मे जीने को मजबुर हुए, आधा वेतन, कम staff, असुरक्षा से , हमारा बहुत पुराना नाता हैं , हमारी परेशानियों का कभी न अंत हुआ, शायद इसी वजह क़ोई बैंकर कहलाता हैं ।                               ...

अधूरी ख़्वाहिशें

ख़्वाहिशें ज़ो हमने पाली थी , अबतक वो अधूरी हैं , मैं तो अधूरा हूँ ही ,वो भी अबतक अधूरी हैं , वक़्त बदला पर , ख़्वाब अब तक अधूरी हैं , तश्वीर जो हमने खिंची थी, आज़ तक वो अधूरी हैं ।                                  चाहत थीं सितारों की, राह अभी अधूरी हैं ,                                  मंज़िल तक पहुँचने की ,चाह अभी अधूरी हैं ,                                 कालचक्र के पहिए की , रफ़्तार अभी अधूरी हैं ,                                 ओ हमराही मेरे मंज़िल की, तेरा साथ अभी अधूरी हैं । बातें हुई थी जीवन पर्यंत की, साँसें अभी अधूरी हैं , तेरा साथ होगा फ़िरदौस तक, तो जीवन अभी अधूरी हैं, ग़र खोट हैं मुझमें क़ोई तो , तेरी सिख अभी अधूरी हैं , मैं तो हूँ आवारा ,तू बता त...

बदलता वक़्त

वक़्त को किसने देखा हैं,              ये वक़्त भी बदल जाएगा , ग़म के बादल कब तक मंडरायेगे ,               एक बयार बहेगी और ये बादल भी छट जाएगे। अंधियारो का हैं मोल बस इतना ,                जब तक काली रात ज़ारी हैं, उम्मीदों का एक़ टिमटिमाता दिया ही,                 सारे अंधियारो पर भारी हैं । ये जीवन हैं विश्वास का धरा ,                वक़्त के साथ उथल पूथल भी ज़ारी हैं , हर गुज़रते लम्हों के साथ ,                 जीवन की अनमोल सीख जारी हैं । वक़्त की क़द्र कर तू बन्दे,                 ये वक़्त भी बदल जाएगा , जब तेरा सितारा चमकेगा ,                  ये दुनिया उसकी रोशनी मे नहाएगा ।                           “...

अंतरद्वन्द

रंग़त तेरी समझ नही पा रहा, सूरत तेरी भुला नही जा रहा, फँसा हूँ बीच मझदार में मैं , फ़िर भी किनारा मुझे नही भा रहा, क़ोई तो बताओ किस द्वन्द में फँसा हूँ मैं ।                                                        निराशाओं के बादल घेरें है ,                                                        यादों के जाले मुझे घेरे है ,                                                        घिरा हूँ किसी अंतहीन भीड़ से,                                                 ...

आज़ाद परिंदा

न उम्मीदों से बंधा हूँ मैं , न सपनो के बोझ से दबा हूँ मैं , मैं अपने मन का मालिक, एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं , बंदिशे जिसे रोक़ नही सकती, ज़ंजीरे जिसे बांध नही सकती, मैं अपनी इक्षाओ का मालिक ,एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं , लड़ता हूँ ख़ुद की चुनौतियों से, जूझता हूँ अपनी ही कमज़ोरियों से मैं, मैं ही हूँ अपने राह व मंज़िल का मलिक़,एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं । हवा के रुख़ की परवाह नही मुझे ,अपना वेग़ ही अपना सहारा है, अपनी आज़ादी का रक्षक हूँ मैं , एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं,    नभ की ऊँचाइयों से डर नही मुझे, ना ही डरता हूँ सूर्य के तेज़ से,  अपनी आशाओं का करिंदा हूँ मैं, एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं ,                                          “ रजनीश भारद्वाज”

मेरा यार

बचपन अभी शुरू हुईं थी, और मिले थे हम साथ सभी, थोड़ी थोड़ी बातें हुई, और यार बन गए साथ सभी, बचपन बदला लड़कपन में, और स्कूल पहुँचे बस्ते के साथ सभी, आज़ाद हो चुके पंछी थे हम, नभ की ऊँचाइयों को छूना था अभी, Last bench हुआ हमारा अड्डा, यही से सम्पन्न हुए हमारे ख़ुराफ़ात सभी, चलो उनकी भी बातें कर ले,      जिन लोगों से हमारी कभी बनी नही, शिकायत ना की गयी हो हमारी, शायद ऐसी कोई दिन या घड़ी नही , हम तो थे आवारा बादल,  ये शिकायतें हमारे पल्ले कभी पड़ी नही , ना फ़िक्र थी दुनिया कि , ना ग़म था समय के बीत जाने का , अपना तो बस एक ही धंधा था, रोज़ “मेरे यार” संग अड्डा जमाने का ।                                “रजनीश भारद्वाज”                        

मेरी हक़ीक़त

‪मासूम सा है चेहरा मेरा पर ,पत्थर जैसा जान है,‬ ‪शांत जो मैं दिखता हूँ पर, मेरे हर साँस में तूफ़ान है,‬ ‪वक्त की क़दर करता हूँ , मुझे हर इंसा की पहचान है ,‬ ‪कद्र करता हूँ मैं हर किसी का, पर अपना भी आत्मसम्मान है ।‬ ‪चुप हूँ तो सिर्फ़ इसलिए , क्योंकि मुझसे जुड़ा किसी का मान है,‬ ‪लड़ने की कोशिश भी नही, क्योंकि मेरे जैसों का ये काम नही ,‬ ‪जबतक कलम हाथ में है , लिखूँगा शांति का पैग़ाम ही ,‬ ‪जिस दिन अपनी हाथ बदल ली , ना पूछूँगा तेरा नाम भी ।‬                    मन है मेरा गंगा का पानी पर, उफ़ान भरा है समुंदर के ज़्वार सा,‬           चरित्र है श्रीराम सा मेरा , पर काया है प्रभु परशुराम सा,‬            हृदय बना है फूल सा कोमल,पर लहू बहे है ज्वालामुखी के अंगार सा,‬           जीवन है मेरा अति सरल पर , “मेरी हक़ीक़त “है हिमालय पहाड़ सा ।‬ ‪                       “रजनीश भारद्वाज”‬

मुसाफ़िर

‪जागा हूँ आज पुरी रात, मैं तेरे वास्ते ,‬ ‪शायद तू मिल जाय कही, किसी अनजान रास्ते,‬ ‪ना तू मिली ना तेरी ख़बर मिली मुझे, ‪शायद तू अनजान है ,मेरी फ़िकर के बात से !‬                                                                   एक़ पैग़ाम भेज रहा हूँ फ़िर ,मैं तेरे वास्ते,‬ ‪                                                                  ग़र मिल जाए पढ़ लेना , तू हमारे वास्ते ,‬ ‪                                                                  ग़र नापसन्द हो क़ोई बात ,तस्दीक़ कर मुझे,‬ ‪   ...

लाचार ज़िंदगी

                       आज बैंक आयीं ऐक बूढ़ी औरत, एक बच्ची उसके साथ थी ,                        हाथ थाम रखा था उसने , शायद औरत चलने मे लाचार थी ।                                                            आँखें उसकी थकी सी थी , चेहरे पे झुर्रियाँ सवार थी                                                            पासबूक पढ़ वो बहुत परेशान थी ,शायद उसे पैसों की दरकार थी ,                                                         ...

संग़िनी

           पहली बार नहीं था जब, मैं किसी से टकराया था,            भाव पढ़ लिया था तुमने, आँखो में जिसका बसेरा था,                                            हाथ पकड़ कर तुमने मुझे , साथ चलना सिखाया था ,                                            मैं तो एक, प्रेमहिन, बेपरवाह, अंतहीन आवारा था ,           तुम सफलता के अर्श पर थी, मैं गर्त का छु रहा किनारा था,           फिर भी, तुमने पीछे मुड़कर, मेरे हौसले को सराहा था ,                                            आभार तुम्हारा की, तुमने मुझ पर ऐतवार किया,             ...

प्रवासी

कोई उनसे भी जा के पूछे, हमें प्रवासी क्यों है बुलाते, देश है ये मेरा भी , फिर हमें प्रवासी क्यों है बताते , मजबुर थे जड़ा सा , दर दर की ठोकरें भी है खाई, इसका अर्थ तो नहीं की, हर कोई हमें प्रवासी ही बुलाये, माना कि हम ग़रीब है, पहचान हमारी फ़क़ीर है, इसका अर्थ क़तई नहीं की, हमने बेच दी ज़मीर है, सड़के जो हम ने नाप दी, मेहनत भी तुमने देख ली, भूखे पेट ही चलते रहे, ख़ुद्दारी भी तुमने देख ली, और बताओ क्या साबित करे, की तुम हमें अपना मान लो, ताकि फिर किसी मजबुर को, तुम प्रवासी ना कहो ।                        “रजनीश भारद्वाज”

जिंदा हूँ मैं

जिन्दा हुँ  मै, कहता है कौन , मर चुकी है ये दुनिया, किसकी सुनता है कौन । कहाँ से आई दुनिया, कहाँ से आया कौम, रास्ते पे मरते भिखारी की, जात पुछता है कौन । कही है तबाही, कही है सुनामी, देख रही दुनिया, खरी होके मौन । कही है गरीबी, कही है लाचारी, भटके हुए मुसाफिर को, राह दिखाता है कौन । वक्त है अभी भी, सम्मभल जाओ ऐ नादानो,  कर गुजर कुछ ऐसा, की याद रखे दुनिया, वर्ना, दुनिया के भीड़ मे, किसको याद करता है कौन ।                                    " रजनीश भारव्दाज"

ढलती जवानी

डर लगता है देख के, ये ढलती हुई जवानी, लरखड़ाते कदमो की आहट, और ये अपनो की बेगानी, कभी था जो खुशीयो का बसेरा, आज है गम की कहानी, गुजरते वक्त के साथ, रोज आती एक नई बिमारी, अब तक था जो रोशनी की निशानी, अब है काली स्याही, भूखे पेट के खातिर घिसटती ये जिंदगानी, डर लगता है देख के ये ढलती हुई जवानी ।                 " रजनीश भारव्दाज "