मासूम सा है चेहरा मेरा पर ,पत्थर जैसा जान है,
शांत जो मैं दिखता हूँ पर, मेरे हर साँस में तूफ़ान है,
वक्त की क़दर करता हूँ , मुझे हर इंसा की पहचान है ,
कद्र करता हूँ मैं हर किसी का, पर अपना भी आत्मसम्मान है ।
चुप हूँ तो सिर्फ़ इसलिए , क्योंकि मुझसे जुड़ा किसी का मान है,
लड़ने की कोशिश भी नही, क्योंकि मेरे जैसों का ये काम नही ,
जबतक कलम हाथ में है , लिखूँगा शांति का पैग़ाम ही ,
जिस दिन अपनी हाथ बदल ली , ना पूछूँगा तेरा नाम भी ।
मन है मेरा गंगा का पानी पर, उफ़ान भरा है समुंदर के ज़्वार सा,
चरित्र है श्रीराम सा मेरा , पर काया है प्रभु परशुराम सा,
हृदय बना है फूल सा कोमल,पर लहू बहे है ज्वालामुखी के अंगार सा,
जीवन है मेरा अति सरल पर , “मेरी हक़ीक़त “है हिमालय पहाड़ सा ।
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