मेरी हक़ीक़त

‪मासूम सा है चेहरा मेरा पर ,पत्थर जैसा जान है,‬
‪शांत जो मैं दिखता हूँ पर, मेरे हर साँस में तूफ़ान है,‬
‪वक्त की क़दर करता हूँ , मुझे हर इंसा की पहचान है ,‬
‪कद्र करता हूँ मैं हर किसी का, पर अपना भी आत्मसम्मान है ।‬

‪चुप हूँ तो सिर्फ़ इसलिए , क्योंकि मुझसे जुड़ा किसी का मान है,‬
‪लड़ने की कोशिश भी नही, क्योंकि मेरे जैसों का ये काम नही ,‬
‪जबतक कलम हाथ में है , लिखूँगा शांति का पैग़ाम ही ,‬
‪जिस दिन अपनी हाथ बदल ली , ना पूछूँगा तेरा नाम भी ।‬
        
          मन है मेरा गंगा का पानी पर, उफ़ान भरा है समुंदर के ज़्वार सा,‬
          चरित्र है श्रीराम सा मेरा , पर काया है प्रभु परशुराम सा,‬ 
          हृदय बना है फूल सा कोमल,पर लहू बहे है ज्वालामुखी के अंगार सा,‬
          जीवन है मेरा अति सरल पर , “मेरी हक़ीक़त “है हिमालय पहाड़ सा ।‬

‪                       “रजनीश भारद्वाज”‬

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