लाचार ज़िंदगी
आज बैंक आयीं ऐक बूढ़ी औरत, एक बच्ची उसके साथ थी ,
हाथ थाम रखा था उसने , शायद औरत चलने मे लाचार थी ।
आँखें उसकी थकी सी थी , चेहरे पे झुर्रियाँ सवार थी
पासबूक पढ़ वो बहुत परेशान थी ,शायद उसे पैसों की दरकार थी ,
मैं बोला, क्या हुआ दादी !, किसी चीज की तलाश थी !
वो बोली, क्या बताऊँ बेटा, बस मौत की दरकार थी !
इतना सुनकर मेरा मन कौंधा, शायद मेरी आँखे भीगने को बेक़रार थी ,
आगे शायद मैं लिख नहीं पाया ,तकलीफ़ बताने को शब्द ही अपर्याप्त थी ।
“रजनीश भारद्वाज”
हाथ थाम रखा था उसने , शायद औरत चलने मे लाचार थी ।
आँखें उसकी थकी सी थी , चेहरे पे झुर्रियाँ सवार थी
पासबूक पढ़ वो बहुत परेशान थी ,शायद उसे पैसों की दरकार थी ,
मैं बोला, क्या हुआ दादी !, किसी चीज की तलाश थी !
वो बोली, क्या बताऊँ बेटा, बस मौत की दरकार थी !
इतना सुनकर मेरा मन कौंधा, शायद मेरी आँखे भीगने को बेक़रार थी ,
आगे शायद मैं लिख नहीं पाया ,तकलीफ़ बताने को शब्द ही अपर्याप्त थी ।
“रजनीश भारद्वाज”
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