ढलती जवानी

डर लगता है देख के, ये ढलती हुई जवानी,
लरखड़ाते कदमो की आहट, और ये अपनो की बेगानी,

कभी था जो खुशीयो का बसेरा, आज है गम की कहानी,
गुजरते वक्त के साथ, रोज आती एक नई बिमारी,
अब तक था जो रोशनी की निशानी, अब है काली स्याही,

भूखे पेट के खातिर घिसटती ये जिंदगानी,
डर लगता है देख के ये ढलती हुई जवानी ।
                " रजनीश भारव्दाज "

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