जागा हूँ आज पुरी रात, मैं तेरे वास्ते ,
शायद तू मिल जाय कही, किसी अनजान रास्ते,
ना तू मिली ना तेरी ख़बर मिली मुझे,शायद तू अनजान है ,मेरी फ़िकर के बात से !
एक़ पैग़ाम भेज रहा हूँ फ़िर ,मैं तेरे वास्ते,
ग़र मिल जाए पढ़ लेना , तू हमारे वास्ते ,
ग़र नापसन्द हो क़ोई बात ,तस्दीक़ कर मुझे,
ना होगी वैसी बात क़भी ,मेरे ज़ानिब से ।
मुशाफ़िर था मैं अकेला , अपनी मुक़ाम के वास्ते,
डगर डगर घुमा हूँ , अपनी ही ज़िद के साथ मैं ,
अब जो मिल गयी हो ,तो रुक जाओ मेरे वास्ते
थोड़ा साथ तुम भी तो चलो, शायद एक हो जाय हमारे रास्ते !
“रजनीश भारद्वाज”
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