रंग़त तेरी समझ नही पा रहा,सूरत तेरी भुला नही जा रहा,
फँसा हूँ बीच मझदार में मैं ,
फ़िर भी किनारा मुझे नही भा रहा,
क़ोई तो बताओ किस द्वन्द में फँसा हूँ मैं ।
निराशाओं के बादल घेरें है ,
यादों के जाले मुझे घेरे है ,
घिरा हूँ किसी अंतहीन भीड़ से,
फ़िर भी तन्हाई मुझे नही भा रहा,
क़ोई तो बताओ किस द्वन्द में फँसा हूँ मैं ।
वक़्त है रूका हुआ ,धुँध है भरा हुआ,
पता नही किस आस में, हाथ है बढ़ा हुआ,
रूका हूँ किसी अनजान मोड़ पे मैं ,
फ़िर भी राह ऐ मंज़िल मुझे नही भा रहा ,
क़ोई तो बताओ किस द्वन्द में फँसा हूँ मैं ।
“रजनीश भारद्वाज”
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