संकल्प

बेटी थी वो हमारी ,
उसकी हाथों में फूल होने चाहिए ,
सपने थे उसके आँखों में ,
जिसे उड़ने को पंख थे चाहिए ।

                        विरोध ही पर्याप्त नही , 
                        विद्रोह होना चाहिए ,
                        जब तक समूल नाश न हो पापियों का ,
                        आप के मन में आक्रोश होना चाहिए ।

ग़र नम है आँख मेरी , 
वो आश्रु नही तेज़ाब होना चाहिए ,
गिरे जो ज़ालिम के सोच पर , 
कु-संस्कार जल के ख़ाक होनी चाहिए ।

                        इंसानियत है धर्म हमारा , 
                        क्या इसमें भी विचारों का भेद होना चाहिए ,
                        कभी कठुआ , कभी बदायूँ , 
                        क्या अब भी बेटी के बदले वर्णो का भेद करना चाहिए ।

ग़र रक़्त हैं शिराओं में ,
वक़्त बे वक़्त उसमें उबाल होना चाहिए ,
शक्ति बची हो जो बाहु बल में ,
हर बेटी की रक्षा का ,
आज ही संकल्प लेना चाहिए ।

                 “ रजनीश भारद्वाज “

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