बचपन अभी शुरू हुईं थी, और मिले थे हम साथ सभी,थोड़ी थोड़ी बातें हुई, और यार बन गए साथ सभी,
बचपन बदला लड़कपन में, और स्कूल पहुँचे बस्ते के साथ सभी,
आज़ाद हो चुके पंछी थे हम, नभ की ऊँचाइयों को छूना था अभी,
Last bench हुआ हमारा अड्डा, यही से सम्पन्न हुए हमारे ख़ुराफ़ात सभी,
चलो उनकी भी बातें कर ले, जिन लोगों से हमारी कभी बनी नही,
शिकायत ना की गयी हो हमारी, शायद ऐसी कोई दिन या घड़ी नही ,
हम तो थे आवारा बादल, ये शिकायतें हमारे पल्ले कभी पड़ी नही ,
ना फ़िक्र थी दुनिया कि , ना ग़म था समय के बीत जाने का ,
अपना तो बस एक ही धंधा था, रोज़ “मेरे यार” संग अड्डा जमाने का ।
“रजनीश भारद्वाज”
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