संग़िनी
पहली बार नहीं था जब, मैं किसी से टकराया था,
भाव पढ़ लिया था तुमने, आँखो में जिसका बसेरा था,
हाथ पकड़ कर तुमने मुझे , साथ चलना सिखाया था ,
मैं तो एक, प्रेमहिन, बेपरवाह, अंतहीन आवारा था ,
तुम सफलता के अर्श पर थी, मैं गर्त का छु रहा किनारा था,
फिर भी, तुमने पीछे मुड़कर, मेरे हौसले को सराहा था ,
आभार तुम्हारा की, तुमने मुझ पर ऐतवार किया,
वक्त की रफ़्तार को रोक कर, मेरे आने का इंतज़ार किया ,
जब भी मैं जकड़ा भँवर में, हाथ थाम तुमने हमें निकला है ,
धन्यवाद ऐ “मेरी संग़िनी“, अबतक साथ जो तुमने निभाया है ।
“रजनीश भारद्वाज”
भाव पढ़ लिया था तुमने, आँखो में जिसका बसेरा था,
हाथ पकड़ कर तुमने मुझे , साथ चलना सिखाया था ,
मैं तो एक, प्रेमहिन, बेपरवाह, अंतहीन आवारा था ,
तुम सफलता के अर्श पर थी, मैं गर्त का छु रहा किनारा था,
फिर भी, तुमने पीछे मुड़कर, मेरे हौसले को सराहा था ,
आभार तुम्हारा की, तुमने मुझ पर ऐतवार किया,
वक्त की रफ़्तार को रोक कर, मेरे आने का इंतज़ार किया ,
जब भी मैं जकड़ा भँवर में, हाथ थाम तुमने हमें निकला है ,
धन्यवाद ऐ “मेरी संग़िनी“, अबतक साथ जो तुमने निभाया है ।
“रजनीश भारद्वाज”
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