ख़्वाहिशें ज़ो हमने पाली थी , अबतक वो अधूरी हैं ,मैं तो अधूरा हूँ ही ,वो भी अबतक अधूरी हैं ,
वक़्त बदला पर , ख़्वाब अब तक अधूरी हैं ,
तश्वीर जो हमने खिंची थी, आज़ तक वो अधूरी हैं ।
चाहत थीं सितारों की, राह अभी अधूरी हैं ,
मंज़िल तक पहुँचने की ,चाह अभी अधूरी हैं ,
कालचक्र के पहिए की , रफ़्तार अभी अधूरी हैं ,
ओ हमराही मेरे मंज़िल की, तेरा साथ अभी अधूरी हैं ।
बातें हुई थी जीवन पर्यंत की, साँसें अभी अधूरी हैं ,
तेरा साथ होगा फ़िरदौस तक, तो जीवन अभी अधूरी हैं,
ग़र खोट हैं मुझमें क़ोई तो , तेरी सिख अभी अधूरी हैं ,
मैं तो हूँ आवारा ,तू बता तू क्यों अबतक अधूरी हैं ,
मैं तो अधूरा हूँ ही , तेरी ख़्वाहिशें क्यों अबतक अधूरी हैं...!
“रजनीश भारद्वाज”
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