उम्मीद की किरण
शून्य से आरम्भ हुआ , शून्य में समा रही,
ऐ मालिक देख तेरी धरती , किस गर्त में समा रही ।
अपनो से अपने बिछड़ रहे , जीवन गुज़र रहा संताप में ,
आँखे भी अब सूख चुकी हैं , दर्द के उफनते बाढ़ में ,
इंसान ही है वो , जो इंसानियत को खा रहा ,
संसाधन को रोक के , लाशें है गिनवा रहा ,
उत्कृष्टता की खोज में , दुर्गति को पा रही ,
ऐ मालिक देख तेरी धरती , किस गर्त में समा रही ।
उम्मीदों की हर किरण ,पीड़ा जनित धुँध में समा रही ,
लाख जतन के बाद भी , ज्ञान चक्षु निर्वात में खो जा रही ,
थाम लो रथ काल-चक्र का , अब आस बस तुझ से बची ,
ऐ मालिक देख तेरी धरती , किस गर्त में समा रही ।
“रजनीश भारद्वाज”
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