न उम्मीदों से बंधा हूँ मैं , न सपनो के बोझ से दबा हूँ मैं ,मैं अपने मन का मालिक, एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं ,
बंदिशे जिसे रोक़ नही सकती, ज़ंजीरे जिसे बांध नही सकती,
मैं अपनी इक्षाओ का मालिक ,एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं ,
लड़ता हूँ ख़ुद की चुनौतियों से, जूझता हूँ अपनी ही कमज़ोरियों से मैं,
मैं ही हूँ अपने राह व मंज़िल का मलिक़,एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं ।
हवा के रुख़ की परवाह नही मुझे ,अपना वेग़ ही अपना सहारा है,
अपनी आज़ादी का रक्षक हूँ मैं , एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं,
नभ की ऊँचाइयों से डर नही मुझे, ना ही डरता हूँ सूर्य के तेज़ से,
अपनी आशाओं का करिंदा हूँ मैं, एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं ,
“ रजनीश भारद्वाज”
Comments
Post a Comment