मैं हूँ बैंकर

उन्नति का आसार हूँ मैं, विपत्ति का आधार हूँ मैं ,
हर वर्ग का साथी हूँ , हर समाज को अपनाता हूँ ,
हर ग्राहक हमारा इष्ट हुआ ,हमारा व्यवहार हमेशा शिष्ट रहा ,
कर्म ही हमारी पूजा हैं ,तब जाकर क़ोई बैंकर कहलाता हैं ।

यूँ ही नही झोपड़ी से ,हमारा office महल हुआ ,
लेज़र और रजिस्टर से ,finacle x का सफ़र हुआ,
सिर से बहते पसीने को कभी, ऐरि से निकलते देखा हैं ,
नदी उतरकर क़ोई सेवा पहुँचाता हैं, तब जाकर क़ोई बैंकर कहलाता हैं ।

यु ही नही हर क़ोई ,5 ट्रिलियन का सपना संजोए हैं ,
आत्मनिर्भरता की हर कसौटी पर, हम ही सर्वप्रथम आए हैं ,
घर परिवार का पता नही, COVID-19 से भी मैं डरा नही,
हर आपदा मे प्रथम पंक्ति के सेवादाता हैं,तब जाकर क़ोई बैंकर कहलाता हैं ।

सेवा हमारी आजीविका हैं, तो हम स्वभाविक मज़दूर हुए ,
अपने ही नेताओ की नाकामी से ,हम असुविधाओं मे जीने को मजबुर हुए,
आधा वेतन, कम staff, असुरक्षा से , हमारा बहुत पुराना नाता हैं ,
हमारी परेशानियों का कभी न अंत हुआ, शायद इसी वजह क़ोई बैंकर कहलाता हैं ।



                                 “रजनीश भारद्वाज”

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