जिंदा हूँ मैं
जिन्दा हुँ मै, कहता है कौन ,
मर चुकी है ये दुनिया, किसकी सुनता है कौन ।
कहाँ से आई दुनिया, कहाँ से आया कौम,
रास्ते पे मरते भिखारी की, जात पुछता है कौन ।
कही है तबाही, कही है सुनामी,
देख रही दुनिया, खरी होके मौन ।
कही है गरीबी, कही है लाचारी,
भटके हुए मुसाफिर को, राह दिखाता है कौन ।
वक्त है अभी भी, सम्मभल जाओ ऐ नादानो,
कर गुजर कुछ ऐसा, की याद रखे दुनिया,
वर्ना, दुनिया के भीड़ मे, किसको याद करता है कौन ।
" रजनीश भारव्दाज"
Comments
Post a Comment