अंतरद्वन्द
रंग़त तेरी समझ नही पा रहा, सूरत तेरी भुला नही जा रहा, फँसा हूँ बीच मझदार में मैं , फ़िर भी किनारा मुझे नही भा रहा, क़ोई तो बताओ किस द्वन्द में फँसा हूँ मैं । निराशाओं के बादल घेरें है , यादों के जाले मुझे घेरे है , घिरा हूँ किसी अंतहीन भीड़ से, ...