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Showing posts from June, 2020

अंतरद्वन्द

रंग़त तेरी समझ नही पा रहा, सूरत तेरी भुला नही जा रहा, फँसा हूँ बीच मझदार में मैं , फ़िर भी किनारा मुझे नही भा रहा, क़ोई तो बताओ किस द्वन्द में फँसा हूँ मैं ।                                                        निराशाओं के बादल घेरें है ,                                                        यादों के जाले मुझे घेरे है ,                                                        घिरा हूँ किसी अंतहीन भीड़ से,                                                 ...

आज़ाद परिंदा

न उम्मीदों से बंधा हूँ मैं , न सपनो के बोझ से दबा हूँ मैं , मैं अपने मन का मालिक, एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं , बंदिशे जिसे रोक़ नही सकती, ज़ंजीरे जिसे बांध नही सकती, मैं अपनी इक्षाओ का मालिक ,एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं , लड़ता हूँ ख़ुद की चुनौतियों से, जूझता हूँ अपनी ही कमज़ोरियों से मैं, मैं ही हूँ अपने राह व मंज़िल का मलिक़,एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं । हवा के रुख़ की परवाह नही मुझे ,अपना वेग़ ही अपना सहारा है, अपनी आज़ादी का रक्षक हूँ मैं , एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं,    नभ की ऊँचाइयों से डर नही मुझे, ना ही डरता हूँ सूर्य के तेज़ से,  अपनी आशाओं का करिंदा हूँ मैं, एक़ आज़ाद परिंदा हूँ मैं ,                                          “ रजनीश भारद्वाज”

मेरा यार

बचपन अभी शुरू हुईं थी, और मिले थे हम साथ सभी, थोड़ी थोड़ी बातें हुई, और यार बन गए साथ सभी, बचपन बदला लड़कपन में, और स्कूल पहुँचे बस्ते के साथ सभी, आज़ाद हो चुके पंछी थे हम, नभ की ऊँचाइयों को छूना था अभी, Last bench हुआ हमारा अड्डा, यही से सम्पन्न हुए हमारे ख़ुराफ़ात सभी, चलो उनकी भी बातें कर ले,      जिन लोगों से हमारी कभी बनी नही, शिकायत ना की गयी हो हमारी, शायद ऐसी कोई दिन या घड़ी नही , हम तो थे आवारा बादल,  ये शिकायतें हमारे पल्ले कभी पड़ी नही , ना फ़िक्र थी दुनिया कि , ना ग़म था समय के बीत जाने का , अपना तो बस एक ही धंधा था, रोज़ “मेरे यार” संग अड्डा जमाने का ।                                “रजनीश भारद्वाज”                        

मेरी हक़ीक़त

‪मासूम सा है चेहरा मेरा पर ,पत्थर जैसा जान है,‬ ‪शांत जो मैं दिखता हूँ पर, मेरे हर साँस में तूफ़ान है,‬ ‪वक्त की क़दर करता हूँ , मुझे हर इंसा की पहचान है ,‬ ‪कद्र करता हूँ मैं हर किसी का, पर अपना भी आत्मसम्मान है ।‬ ‪चुप हूँ तो सिर्फ़ इसलिए , क्योंकि मुझसे जुड़ा किसी का मान है,‬ ‪लड़ने की कोशिश भी नही, क्योंकि मेरे जैसों का ये काम नही ,‬ ‪जबतक कलम हाथ में है , लिखूँगा शांति का पैग़ाम ही ,‬ ‪जिस दिन अपनी हाथ बदल ली , ना पूछूँगा तेरा नाम भी ।‬                    मन है मेरा गंगा का पानी पर, उफ़ान भरा है समुंदर के ज़्वार सा,‬           चरित्र है श्रीराम सा मेरा , पर काया है प्रभु परशुराम सा,‬            हृदय बना है फूल सा कोमल,पर लहू बहे है ज्वालामुखी के अंगार सा,‬           जीवन है मेरा अति सरल पर , “मेरी हक़ीक़त “है हिमालय पहाड़ सा ।‬ ‪                       “रजनीश भारद्वाज”‬

मुसाफ़िर

‪जागा हूँ आज पुरी रात, मैं तेरे वास्ते ,‬ ‪शायद तू मिल जाय कही, किसी अनजान रास्ते,‬ ‪ना तू मिली ना तेरी ख़बर मिली मुझे, ‪शायद तू अनजान है ,मेरी फ़िकर के बात से !‬                                                                   एक़ पैग़ाम भेज रहा हूँ फ़िर ,मैं तेरे वास्ते,‬ ‪                                                                  ग़र मिल जाए पढ़ लेना , तू हमारे वास्ते ,‬ ‪                                                                  ग़र नापसन्द हो क़ोई बात ,तस्दीक़ कर मुझे,‬ ‪   ...

लाचार ज़िंदगी

                       आज बैंक आयीं ऐक बूढ़ी औरत, एक बच्ची उसके साथ थी ,                        हाथ थाम रखा था उसने , शायद औरत चलने मे लाचार थी ।                                                            आँखें उसकी थकी सी थी , चेहरे पे झुर्रियाँ सवार थी                                                            पासबूक पढ़ वो बहुत परेशान थी ,शायद उसे पैसों की दरकार थी ,                                                         ...

संग़िनी

           पहली बार नहीं था जब, मैं किसी से टकराया था,            भाव पढ़ लिया था तुमने, आँखो में जिसका बसेरा था,                                            हाथ पकड़ कर तुमने मुझे , साथ चलना सिखाया था ,                                            मैं तो एक, प्रेमहिन, बेपरवाह, अंतहीन आवारा था ,           तुम सफलता के अर्श पर थी, मैं गर्त का छु रहा किनारा था,           फिर भी, तुमने पीछे मुड़कर, मेरे हौसले को सराहा था ,                                            आभार तुम्हारा की, तुमने मुझ पर ऐतवार किया,             ...

प्रवासी

कोई उनसे भी जा के पूछे, हमें प्रवासी क्यों है बुलाते, देश है ये मेरा भी , फिर हमें प्रवासी क्यों है बताते , मजबुर थे जड़ा सा , दर दर की ठोकरें भी है खाई, इसका अर्थ तो नहीं की, हर कोई हमें प्रवासी ही बुलाये, माना कि हम ग़रीब है, पहचान हमारी फ़क़ीर है, इसका अर्थ क़तई नहीं की, हमने बेच दी ज़मीर है, सड़के जो हम ने नाप दी, मेहनत भी तुमने देख ली, भूखे पेट ही चलते रहे, ख़ुद्दारी भी तुमने देख ली, और बताओ क्या साबित करे, की तुम हमें अपना मान लो, ताकि फिर किसी मजबुर को, तुम प्रवासी ना कहो ।                        “रजनीश भारद्वाज”

जिंदा हूँ मैं

जिन्दा हुँ  मै, कहता है कौन , मर चुकी है ये दुनिया, किसकी सुनता है कौन । कहाँ से आई दुनिया, कहाँ से आया कौम, रास्ते पे मरते भिखारी की, जात पुछता है कौन । कही है तबाही, कही है सुनामी, देख रही दुनिया, खरी होके मौन । कही है गरीबी, कही है लाचारी, भटके हुए मुसाफिर को, राह दिखाता है कौन । वक्त है अभी भी, सम्मभल जाओ ऐ नादानो,  कर गुजर कुछ ऐसा, की याद रखे दुनिया, वर्ना, दुनिया के भीड़ मे, किसको याद करता है कौन ।                                    " रजनीश भारव्दाज"

ढलती जवानी

डर लगता है देख के, ये ढलती हुई जवानी, लरखड़ाते कदमो की आहट, और ये अपनो की बेगानी, कभी था जो खुशीयो का बसेरा, आज है गम की कहानी, गुजरते वक्त के साथ, रोज आती एक नई बिमारी, अब तक था जो रोशनी की निशानी, अब है काली स्याही, भूखे पेट के खातिर घिसटती ये जिंदगानी, डर लगता है देख के ये ढलती हुई जवानी ।                 " रजनीश भारव्दाज "

"आवारा हूँ मैं"

लोग कहते हैं  "आवारा हूँ मैं", सरहदे तोड़ कर बहता धारा हूँ मैं , निकल चला हूँ दर से अपने, राह भटका बंजारा हूँ मैं, तलाश हैं मंजिल की, ढुंढ रहा किनारा हूँ मैं, लोग कहते हैं "आवारा हूँ मैं" ।।  दुनिया के मेले मे खोया चेहरा हूँ मैं,  सतरंज की बिसात पर चला मोहरा हूँ मैं, दुनिया से अंजान खुद का पैमाना हूँ  मैं, लोग कहते हैं " आवारा हूँ मैं"  ।।                    " रजनीश भारव्दाज"

मेरा बचपन

                                                           मेरा बचपन                  आज अनायास ही, मुझे मेरा बचपन फिर याद आया,                   वो गालियाँ,वो आँगन,सब कुछ फिर याद आया,                   वो बरगद का झूला,वो पीपल का छाओँ,                   आज फिर हरे हो गये,मेरे पुराने घाव ।                                                              वो सरसों का खेत,वो कुआँ का पानी,                                  ...